भारत

बंगाल में क्यों अपने सियासी पत्ते नहीं खोल रही भाजपा

कोलकाता : पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवारों के नाम सामने आने के बाद राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। भाजपा की केंद्रीय चुनाव समिति ने गुरुवार देर रात उम्मीदवारों पर मंथन तो किया, लेकिन अभी तक नामों का खुलासा नहीं किया है।

पार्टी का सारा जोर रविवार को होने वाली प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली पर है, जो चुनावों की घोषणा के बाद विधिवत प्रचार अभियान का आगाज होगा।

यह रैली राज्य में भाजपा की परिवर्तन यात्राओं के समापन पर होने जा रही है। पश्चिम बंगाल में भाजपा को अपने 200 पार के नारे को हकीकत में बदलने के लिए जमकर मेहनत करनी पड़ रही है।

हर विधानसभा क्षेत्र में देशभर के नेताओं और कार्यकर्ताओं की फौज उतारने के साथ पार्टी राजनीतिक व सामाजिक ध्रुवीकरण की भी स्थिति देख रही है।

गुरुवार को दिल्ली में हुए राज्य और केंद्र के नेताओं के मंथन में वहां बन रही त्रिकोणीय मुकाबले की स्थिति को भाजपा अपने लिए मुफीद मान रही है।

तृणमूल के साथ सीधे के बजाय त्रिकोणीय मुकाबले में वोटों के बंटवारे में भाजपा अपने लिए लाभ देख रही है। सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस-वामपंथी-आईएसएफ गठबंधन को भाजपा कमजोर नहीं मान रही है, बल्कि इसकी मजबूती को अपने लिए अच्छा मान रही है।

पार्टी को उम्मीद है कि रविवार को प्रधानमंत्री की रैली के बाद माहौल उसके हक में बढ़ना शुरू होगा। चुनावों में कड़ी टक्कर देने के लिए कई केंद्रीय मंत्री और सांसद भी मैदान में उतरने को तैयार हैं।

हालांकि, राज्य इकाई ने अभी तक किसी सांसद या मंत्री को चुनाव लड़ाने की सिफारिश नहीं की है। केंद्रीय नेतृत्व चाहे तो रणनीति के मुताबिक किसी सांसदों को टिकट दे सकता है।

राज्य में भाजपा का फिलहाल कोई मुख्यमंत्री पद का चेहरा भी नहीं है। ऐसे में सारा ध्यान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इर्दगिर्द ही रहेगा।

भाजपा भी नेतृत्व की तुलना में ममता बनर्जी सरकार के साथ केंद्र सरकार को रख रही है। इसके पीछे उसका तर्क है कि पार्टी राज्य में कभी सत्ता में नहीं रही है।

ऐसे में वह केंद्र की उपलब्धियों और योजनाओं के साथ राज्य के लिए भविष्य की कार्ययोजना ही रख सकती है। साथ ही बता सकती है कि केंद्र के साथ राज्य में भी सरकार बनने पर किस तरह से डबल इंजन की सरकार काम करेगी।

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