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झारखंड विधानसभा में शुरू से ही नियुक्तियों में घोटाले का हो गया था आगाज, पहली बार…

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Jharkhand assembly scam in appointments:  झारखंड अलग राज्य बनने के बाद विधानसभा गठन के साथ ही वहां नियुक्तियों में घोटाले का खेल शुरू कर दिया गया था।

इस संबंध में जानकारी पहली बार 12 वर्षों बाद सुर्खियों में तब आया, जब एक फरवरी 2012 को तत्कालीन राज्यपाल सैयद अहमद ने नियुक्तियों और प्रोन्नति पर सवाल उठाते हुए विधानसभा को पत्र लिखा।

इसकी जांच कराने के लिए कहा गया। नियुक्तियों की वैधता पर विधानसभा से जवाब मागा। राज्यपाल का पत्र तत्कालीन स्पीकर सीपी सिंह को मिला।

राज्यपाल ने दिया था जांच आयोग के गठन का निर्देश

स्पीकर सीपी सिंह ने तब राज्यपाल से आग्रह किया कि चाहें, तो वह खुद ही इन नियुक्तियों की जांच करा लें। इसके बाद राज्यपाल ने जांच आयोग के गठन का निर्देश दिया।

राज्य सरकार ने इस संबंध में पत्र जारी करते हुए पूर्व न्यायाधीश लोकनाथ प्रसाद की अध्यक्षता में एक सदस्यीय आयोग का गठन किया। राज्यपाल ने 30 बिंदुओं यानी टर्म ऑफ रेफरेंस के आधार पर नियुक्ति-प्रोन्नति में हुई गड़बड़ी की जांच करने का निर्देश दिया था।

इन बिंदुओं पर जांच का निर्देश

क्या विज्ञापन में पदों की संख्या का उल्लेख नहीं था, क्या बिना पदों की संख्या के जारी किया गया विज्ञापन वैध है।

क्या तैयार मेधा सूची में कई रोल नंबर पर ओवर राइटिंग की गई।

क्या पलामू के 13 अभ्यर्थियों को स्थायी डाक पता पर पोस्ट भेजा गया। क्या पत्र 12 घंटे के भीतर मिल गया।

क्या सफल उम्मीदवारों ने दो दिनों के अंदर ही योगदान दे दिया।

क्या अनुसेवक के लिए नियुक्ति प्रक्रिया द्वारा कथित रूप से चयनित व्यक्तियों को ऑर्डर्ली रूप से नियुक्त कर लिया गया।

क्या गठित नियुक्ति कोषांग में कौशल किशोर प्रसाद और सोनेत सोरेन को शामिल किया गया, जिनके खिलाफ पूर्व स्पीकर एमपी सिंह ने प्रतिकूल टिप्पणी की थी।

तत्कालीन सचिव-सह-साक्षात्कार कमेटी के अध्यक्ष व सदस्य कौशल किशोर प्रसाद विधानसभा सत्र में व्यस्त थे। पूरी अवधि में टाइपिंग शाखा के नारायण सिंह शामिल हुए। इसके बाद भी साक्षात्कार कमेटी के सदस्यों ने हस्ताक्षर कर दिए।

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