रांची : झारखंड हाई कोर्ट ने एक अहम मामले में बड़ा फैसला देते हुए फैमिली कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया। फैमिली कोर्ट ने पहले पति की बच्चों की कस्टडी वाली अर्जी को खारिज करते हुए “शेयर्ड पेरेंटिंग” की इजाजत दी थी, लेकिन हाई कोर्ट ने अब साफ कहा है कि बच्चे की असली भलाई, पिता के प्राकृतिक अभिभावक (नेचुरल गार्जियन) होने से ज्यादा महत्वपूर्ण है।
इस अपील की सुनवाई हाई कोर्ट के जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद और जस्टिस अरुण कुमार राय की खंडपीठ ने की। मामला देवघर के एक दंपति से जुड़ा है, जिनकी शादी 26 जून 2011 को हिंदू रीति-रिवाजों से हुई थी और बाद में देवघर के सब रजिस्ट्रार ऑफिस में रजिस्टर भी की गई थी।
दंपति के बीच बढ़ा झगड़ा, बच्चों पर पड़ा असर
शादी के बाद 23 अगस्त 2012 को उन्हें एक बेटा और वर्ष 2017 में एक बेटी हुई। समय बीतने के साथ माता–पिता के बीच विवाद बढ़ने लगे। इसके बाद पति ने शादी खत्म करने का केस दर्ज कराया। इसी बीच पति ने हिंदू माइनॉरिटी एंड गार्जियनशिप एक्ट के सेक्शन 6 के तहत बच्चों की कस्टडी के लिए फैमिली कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
कोर्ट की सुनवाई में बताया गया कि दंपति के बीच कई केस चल रहे हैं। दोनों एक ही शहर देवघर में रहते हैं। बच्चे फिलहाल अपनी मां के साथ नाना के घर में रह रहे हैं और वहीं से स्कूल भी जा रहे हैं। बेटा 12 साल और बेटी 8 साल की है, इसलिए दोनों अभी नाबालिग हैं।
बच्चों के लिए स्थिर घर जरूरी – हाई कोर्ट
हाई कोर्ट ने कहा कि शेयर्ड पेरेंटिंग हर मामले में काम नहीं करती। यहां माता-पिता के बीच लगातार झगड़े हो रहे थे, जिससे बच्चों पर गलत प्रभाव पड़ सकता है। बच्चे अगर दो घरों के बीच आते-जाते रहेंगे तो उनकी पढ़ाई और भविष्य प्रभावित हो सकता है।
कोर्ट ने कहा कि बच्चों के लिए एक स्थिर और सुरक्षित माहौल सबसे जरूरी है। माता-पिता के बीच तनाव हो तो “शेयर्ड पेरेंटिंग” से स्थिति खराब हो सकती है। इसलिए बच्चे की भलाई को ध्यान में रखते हुए फैमिली कोर्ट का आदेश रद्द किया गया।
क्या समझना जरूरी है?
बच्चे की भलाई सबसे बड़ी प्राथमिकता
माता-पिता के झगड़े बच्चों के मानसिक विकास पर असर डालते हैं
हर केस में शेयर्ड पेरेंटिंग सही नहीं होती
बच्चों के लिए स्थायी और शांत माहौल बेहतर है
यह फैसला बताता है कि कोर्ट हमेशा बच्चे के हित को सबसे ऊपर मानती है।




