Homeझारखंडअबीर-गुलाल लगाकर बसंत पंचमी के दिन बाबा मंदिर पहुंचे भक्त, तिलकोत्सव में…

अबीर-गुलाल लगाकर बसंत पंचमी के दिन बाबा मंदिर पहुंचे भक्त, तिलकोत्सव में…

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Deoghar Basant Panchami: बसंत पंचमी (Basant Panchami) के मौके पर बुधवार को बाबा धाम में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ी। लोग यहां एक दूसरे को अबीर-गुलाल लगाकर बधाई देते नजर आए। बसंत पंचमी के दिन विश्व प्रसिद्ध बाबा बैद्यनाथ मंदिर में बाबा के तिलकोत्सव के रूप में मनाया जाता है, जो दो दिनों तक चलता है

इसे लेकर पहले दिन आस्था का हुजूम देखने को मिल रहा है। तिलक की इस रस्म को अदा करने के लिए बाबा के ससुराल यानी मिथिलांचल से बड़ी संख्या में श्रद्धालु अलग-अलग तरह के कांवर लेकर बाबा धाम पहुंचने लगे हैं। हर साल बसंत पंचमी के दिन मिथिलांचल से एक बड़ा जत्था बाबा का जलाभिषेक करने देवघर पहुंचता है।

विशेष प्रकार के कांवड़, वेशभूषा और भाषा से अलग पहचान रखने वाले ये मिथिलावासी अपने को बाबा का संबंधी मानते हैं। इसी नाते Basant Panchami के दिन बाबा के तिलकोत्सव में शामिल होने देवघर आते हैं। फिर शिवरात्रि पर शिव विवाह में शामिल होने का संकल्प लेकर वापस लौट जाते हैं।

बाबा के तिलकोत्सव में शामिल होने वाले श्रद्धालुओं को तिलकहरु कहा जाता है। तिलकोत्सव मनाने की यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। मिथलावासियों का मानना है कि माता पार्वती, सती, एवं माता सीता हिमालय पर्वत की सीमा की थीं और मिथिला हिमालय (Himalaya) की सीमा में है।

इसलिए माता पार्वती मिथिला की बेटी हैं। यही वजह है कि मिथिलावासी लड़की पक्ष की तरफ से आते हुए तिलकोत्सव मनाते हैं। कई टोलियों में आए ये मिथिलावासी शहर के कई जगहों पर इकठ्ठा होते हैं। फिर पूजा-पाठ, पारंपरिक भजन-कीर्तन कर वसंत पंचमी के दिन बाबा का तिलकोत्सव मनाते हैं।

बाबा के तिलकोत्सव में शामिल होने वाले लोग अबीर-गुलाल खेल आपस में खुशियां बांटते हैं और एक दूसरे को बधाइयां देते हैं। मंदिर के पुरोहित की माने तो देवाधिदेव महादेव को तिलक चढ़ाने की परंपरा प्राचीन है।मान्यता के अनुसार इस परंपरा की शुरुआत ऋषि-मुनियों ने की थी। इसी परंपरा के अनुसार वसंत पंचमी के दिन मिथिलांचल के लोग बाबा को तिलक चढ़ाते हैं।

बताया जाता है कि ये जब आते हैं बिहार से तो देवघर के लोग सतर्क हो जाते हैं। क्योंकि, ये लोग अपने घर से दहेज सामान के अलावा कुछ नहीं लाते। खाने-पीने, रहने, बर्तन, जलावन की लकड़ी आदि सब ये यहीं से जुगाड़ करते हैं।

ये किसी से मांगते नहीं, उठा लेते हैं। क्योंकि, ये सोचते हैं कि वे अपने बहनोई (जीजा) के घर आये हैं। बहनोई का ही सारा सामान, पेड़-पौधे, सडक, पानी आदि हैं। इसलिए उन्हें उन सामानों के उपयोग के लिए किसी व्यक्ति से इजाजत लेने की क्या जरूरत, जिसका जो सामान हाथ लगा, उठा लिए।

चूल्हा जलाने के लिए पेड़ काट दिया, जहां मन वहां शौच कर दिया, कहीं भी सो लिया, बैठ लिया। कोई कुछ नहीं बोलता। देवघरवासी ही नहीं, पुलिस-प्रशासन भी यह जानता है, कि ये लोग अपने बहनोई के घर हर वर्ष दहेज चढ़ाने आते हैं। कहीं कोई इन्हें नहीं रोकता। बिल्कुल हुर्मूट की तरह बड़ा-मोटा भारी कांवर लेकर जब ये सड़क पर चलते हैं, लोग डर से पहले ही सड़क से हट जाते हैं। भीड़ के बीच से ये जब गुजर रहे होते हैं तो लोगों को धक्का भी लगता है।

भोलेनाथ को दहेज में ये भांग, धतूरा, भस्म, सिंदूर आदि चढ़ाते हैं। इस दौरान इनकी वेश-भूषा सावन महीने की तरह भगवा रंग की होती है। वसंत पंचमी के दूसरे दिन से ये मिथिलांचल वापस लौटने लगते हैं। वसंत माह में इनके देवघर आने से सावन सा नजारा देखने को मिलता है और एक उत्साहपूर्ण वातावरण दिखाई देता है।

सुबह से मोर्चे पर जिला प्रशासन

बसंत पंचमी के अवसर पर श्रद्धालुओं को हर संभव सुविधा व सुरक्षा-व्यवस्था को लेकर डीसी विशाल सागर ने अहले सुबह बाबा मंदिर व आसपास के क्षेत्रों का निरीक्षण किया। भीड़ व्यस्थापन, विधि व्यवस्था व सुरक्षा व्यवस्था का जायजा लिया।

उन्होंने मंदिर प्रांगण व आसपास के क्षेत्रों में लगातार साफ-सफाई कराने के अलावा श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए स्पाईरल की व्यवस्था, Barricading , दंडाधिकारियों एवं सुरक्षा कर्मियों की प्रतिनियुक्ति का निरीक्षण करते हुए संबंधित अधिकारियों को आवश्यक व उचित दिशा-निर्देश दिया।

डीसी ने मंदिर प्रांगण और आसपास के क्षेत्रों में छुटे हुए कांवड़ को हटाने का निर्देश भी दिया, ताकि श्रद्धालुओं को पैदल चलने में किसी प्रकार की असुविधा न हो। साथ ही मंदिर प्रांगण का निरीक्षण करते हुए श्रद्धालुओं (Devotees) को हर संभव आवश्यक सुविधा के अलावा कतारबद्ध जलार्पण कराने का निर्देश अधिकारियों को दिया।

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