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… सत्य के समुंदर में समा जाना ही असली हिंदू धर्म है’, राहुल गांधी ने…

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Satyam, Shivam, Sundaram: बहुत सारे नेता (Leader) धर्म को लेकर अपने विचार बहुत जगाहों पर व्यक्त करते हैं। जिनकी बातें लोगों को अच्छी लगती है, वे खूब तारीफ पाते हैं। वहीं दूसरी और जिनकी बातें लोग पसंद नहीं करते उन्हें जनता से गालियां खानी पड़ती हैं।

कांग्रेस सांसद राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने भी एक लेख में हिंदू धर्म पर विचार रखे हैं।

… सत्य के समुंदर में समा जाना ही असली हिंदू धर्म है', राहुल गांधी ने…-... To be immersed in the ocean of truth is the real Hindu religion', Rahul Gandhi said...

राहुल गांधी ने X पर अपना लेख साझा किया

कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने एक लेख में हिंदू धर्म पर विचार (Thoughts on Hinduism) रखे हैं। राहुल लिखते हैं कि ‘हर प्रकार के पूर्वाग्रह व भय से मुक्ति पा सत्य के समुंदर में समा जाना ही असली हिंदू धर्म है।

‘ कांग्रेस नेता ने X पर अपना लेख साझा किया। इसमें राहुल कहते हैं कि ‘सत्य और अहिंसा ही एकमात्र रास्ता है।’ वे लिखते हैं कि ‘निर्बल की रक्षा का कर्तव्य ही हिंदू का धर्म है।’

राहुल कहते हैं कि हिंदू धर्म को कुछ मान्यताओं तक सीमित नहीं रखा जा सकता, न ही उसके किसी ‘राष्ट्र’ या भौगोलिक (‘Nation’ or Geographical) दायरे तक बांधा जा सकता है। राहुल ने अपने लेख में कहा कि ‘यह कहना कि हिंदू धर्म केवल कुछ सांस्कृतिक मान्यताओं तक सीमित है, उसका अल्‍प पाठ होगा। किसी राष्ट्र या भूभाग विशेष से बांधना भी उसकी अवमानना है।’

… सत्य के समुंदर में समा जाना ही असली हिंदू धर्म है', राहुल गांधी ने…-... To be immersed in the ocean of truth is the real Hindu religion', Rahul Gandhi said...

राहुल गाँधी की कही हुई बातें

‘सत्यम् शिवम् सुंदरम् (Satyam Shivam Sundaram) कल्पना कीजिए, ज़िंदगी प्रेम और उल्लास का, भूख और भय का एक महासागर है; और हम सब उसमें तैर रहे हैं। इसकी खूबसूरत और भयावह, शक्तिशाली और सतत परिवर्तनशील लहरों के बीचोंबीच हम जीने का प्रयत्न करते हैं।

इस महासागर में – जहां प्रेम, उल्लास और अथाह आनंद है – वहीं भय भी है। मृत्यु का भय, भूख का भय, दुखों का भय, लाभ-हानि का भय, भीड़ में खो जाने और असफल रह जाने का भय। इस महासागर में सामूहिक और निरंतर यात्रा का नाम जीवन है जिसकी भयावह गहराइयों में हम सब तैरते हैं।

भयावह इसलिए, क्योंकि इस महासागर से आज तक न तो कोई बच पाया है, न ही बच पाएगा। जिस व्यक्ति में अपने भय की तह में जाकर इस महासागर को सत्यनिष्ठा से देखने का साहस है – हिंदू वही है।

यह कहना कि हिंदू धर्म केवल कुछ सांस्कृतिक मान्यताओं तक सीमित है उसका अल्प पाठ होगा। किसी राष्ट्र या भूभाग-विशेष (Nation or Region Specific) से बांधना भी उसकी अवमानना है। भय के साथ अपने आत्म के सम्बंध को समझने के लिए मनुष्यता द्वारा खोजी गई एक पद्धति है हिन्दू धर्म। यह सत्य को अंगीकार करने का एक मार्ग है। यह मार्ग किसी एक का नहीं है, मगर यह हर उस व्यक्ति के लिए सुलभ है जो इस पर चलना चाहता है।

एक हिंदू अपने अस्तित्व में समस्त चराचर को करुणा और गरिमा के साथ उदारतापूर्वक आत्मसात करता है, क्योंकि वह जानता है कि जीवनरूपी इस महासागर में हम सब डूब-उतर रहे हैं।

अस्तित्व के लिए संघर्षरत सभी प्राणियों की रक्षा वह आगे बढ़कर करता है। सबसे निर्बल चिंताओं और बेआवाज़ चीखों के प्रति भी वह सचेत रहता है। निर्बल की रक्षा का कर्तव्य ही उसका धर्म है।

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सत्य और अहिंसा (Truth and Nonviolence) की शक्ति से संसार की सबसे असहाय पुकारों को सुनना और उनका समाधान ढूँढना ही उसका धर्म है। एक हिंदू में अपने भय को गहनता में देखने और उसे स्वीकार करने का साहस होता है। जीवन की यात्रा में वह भयरूपी शत्रु को मित्र में बदलना सीखता है।

भय उस पर कभी हावी नहीं हो पाता, वरन घनिष्ठ सखा बनकर उसे आगे की राह दिखाता है। एक हिंदू का आत्म इतना कमजोर नहीं होता कि वह अपने भय के वश में आकर किसी किस्म के क्रोध, घृणा या प्रतिहिंसा का माध्यम बन जाये।

हिंदू जानता है कि संसार की समस्त ज्ञानराशि सामूहिक (Knowledge Collective) है और सब लोगों की इच्छाशक्ति व प्रयास से उपजी है। यह सिर्फ उस अकेले की संपत्ति नहीं है। सब कुछ सबका है।

वह जानता है कि कुछ भी स्थायी नहीं और संसार-रूपी महासागर की इन धाराओं में जीवन लगातार परिवर्तनशील है। ज्ञान के प्रति उत्कट जिज्ञासा की भावना से संचालित हिंदू का अंतःकरण सदैव खुला रहता है। वह विनम्र होता है और इस भवसागर में विचर रहे किसी भी व्यक्ति से सुनने-सीखने को प्रस्तुत।

हिंदू (Hindu) सभी प्राणियों से प्रेम करता है। वह जानता है कि इस महासागर में तैरने के सबके अपने-अपने रास्ते और तरीके हैं। सबको अपनी राह पर चलने का अधिकार है। वह सभी रास्तों से प्रेम करता है, सबका आदर करता है और उनकी उपस्थिति को बिल्कुल अपना मानकर स्वीकार करता है।’

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