Homeझारखंडशहीदों को नमन करने सेरेंगसिया घाटी पहुंचे सीएम हेमंत

शहीदों को नमन करने सेरेंगसिया घाटी पहुंचे सीएम हेमंत

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Hemant Soren Tribute to the Martyrs : कोल विद्रोह के नायकों ने 1837 में Jharkhand के कोल्हान इलाके की Serengsia Ghati में अंग्रेजी हुकूमत की बड़ी फौज को तीर-धनुष, विशेष किस्म के गुलेल और पत्थरों के हथियारों से परास्त कर दिया था। इस छापामार युद्ध में अंग्रेजी फौज के 100 से ज्यादा सैनिक मारे गए थे।

वहीं, 26 आदिवासी लड़ाके भी शहीद हुए थे। बाद में अंग्रेजी हुकूमत ने इस विद्रोह के Nayak Poto हो और उनके साथियों को गिरफ्तार कर उन्हें सरेआम फांसी दे दी थी। उन शहीदों को नमन करने के लिए रविवार को सेरेंगसिया घाटी में हजारों लोगों का जुटान हुआ।

झारखंड के मुख्यमंत्री Hemant Soren, मंत्री Ramdas Sorenऔर विधायक कल्पना सोरेन ने भी Serengsia पहुंचकर शहीदों के स्मारकों पर शीश नवाया। मुख्यमंत्री ने कहा, “जब देश ने आजाद होने का सपना भी नहीं देखा था, तब हमारे पूर्वजों गरीब गुरबा आदिवासी समाज के लोगों ने ताकतवर अंग्रेजों के खिलाफ लड़कर अपनी ताकत का लोहा मनवाया। हमें आदिवासी होने का गर्व है।”

सेरेंगसिया घाटी में शहीदों के स्मारक पर आदिवासी लड़ाकों की बहादुरी और शहादत की दास्तान दर्ज है। झारखंड के कोल्हान (वर्तमान में झारखंड के तीन जिले – पूर्वी सिंहभूम, पश्चिम सिंहभूम और सरायकेला-खरसावां इसके अंतर्गत आते हैं) में रहने वाली ‘हो’ जनजाति ने अपनी जमीनों पर न तो कभी Mughal का आधिपत्य स्वीकार किया था और न ही अंग्रेजों का। अंग्रेजी शासन के वक्त यह इलाका Bengal Presidency का हिस्सा था, लेकिन ‘हो’ जनजाति के लोग इस हुकूमत को मानने को तैयार न थे।

हुकूमत के खिलाफ उनके विद्रोह की शुरुआत 1821 में ही हो गई थी। ऐसे में इस इलाके पर आधिपत्य स्थापित करने के लिए अंग्रेजी हुकूमत ने Governor General के एजेंट कैप्टन विलकिंसन के नेतृत्व में एक सामरिक योजना बनाई थी। तोपों और हथियारों से लैस अंग्रेजी सेना इलाके पर कब्जा करने के लिए 17-18 नवंबर, 1837 को कैप्टन आर्मस्ट्रांग के नेतृत्व में निकली थी।

इस फौज में 400 सशस्त्र सैनिक और 60 घुड़सवार सिपाही थे। इसकी खबर विद्रोहियों के सरदार पोटो हो को लग गई। उनके नेतृत्व में आदिवासी लड़ाके सेरेंगसिया घाटी में घात लगाकर बैठ गए।

जैसे ही अंग्रेजी सैनिक पहुंचे, आदिवासी लड़ाकों ने उनके ऊपर तीरों की बरसात कर दी। भीषण लड़ाई हुई और कंपनी की सेना को हार का मुंह देखना पड़ा। आदिवासियों के पास तीर- कमान और अंग्रेजों के पास तोप थे, फिर भी जीत आदिवासियों की ही हुई थी। अंग्रेजों को इस लड़ाई में भारी नुकसान उठाना पड़ा। इस पराजय से गुस्साए अंग्रेजों ने कुछ दिनों के बाद विद्रोहियों के केंद्र राजाबसा गांव पर हमला कर भीषण रक्तपात मचाया।

दिसंबर 1837 में विद्रोहियों के नेता पोटो हो और उनके सहयोगियों को गिरफ्तार कर लिया गया और मुकदमा चलाकर फांसी की सजा सुनाई गई। 1 जनवरी 1838 को पोटो हो, बुड़ई हो तथा नारा हो को जगन्नाथपुर में बरगद के पेड़ पर फांसी दी गई। जबकि अगले दिन बोरा हो तथा पंडुवा हो को Serengsia Ghati में फांसी दी गई।

इसके अलावा 79 आदिवासी लड़ाकों को विभिन्न आरोपों में जेल भेज दिया गया। हर साल 2 फरवरी को सेरेंगसिया घाटी में इस विद्रोह के नायकों को याद करने के लिए शहीद मेला का आयोजन होता है, जिसमें झारखंड के साथ-साथ पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल और Odisha से भी लोग बड़ी संख्या में पहुंचते हैं।

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