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संदेशखली मामले में संसद की विशेषाधिकार समिति के नोटिस पर रोक, सुप्रीम कोर्ट ने…

संदेशखली मामले में पश्चिम बंगाल सरकार को Supreme Court से बड़ी राहत मिली है। Supreme Court ने संसद की विशेषाधिकार समिति के नोटिस पर रोक लगा दी है।

Supreme Court: संदेशखली मामले में पश्चिम बंगाल सरकार को Supreme Court से बड़ी राहत मिली है। Supreme Court ने संसद की विशेषाधिकार समिति के नोटिस पर रोक लगा दी है।

दरअसल BJP सांसद से दुर्व्यवहार के मामले पर विशेषाधिकार समिति ने बंगाल के मुख्य सचिव भगवती प्रसाद गोपालिका, DGP राजीव कुमार, उत्तर 24 परगना के जिलाधिकारी शरद कुमार द्विवेदी, बशीरहाट के पुलिस अधीक्षक हुसैन मेहदी रहमान और अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक पार्थ घोष को समन जारी कर 19 फरवरी को बुलाया था। इस नोटिस को चुनौती देकर ममता सरकार की तरफ से याचिका दायर की गई थी।

पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी ने मामला सोमवार को Supreme Court में मुख्य न्यायाधीश D.Y चंद्रचूड़ (D.Y Chandrachud) की बेंच के सामने उठाया।

सिब्बल ने कहा, ‘संदेशखाली में धारा 144 लगी हुई थी। इसके बाद धारा-144 का उल्लंघन करके की गई राजनीतिक गतिविधि विशेषाधिकार का हनन नहीं हो सकती। इस पर Supreme Court ने कहा कि हम लोगों ने याचिका पढ़ी नहीं है, इसलिए बाद में लिस्ट करते हैं। हालांकि सिब्बल ने कहा कि नोटिस पर अधिकारियों को आज ही पेश होने के लिए बुलाया गया है। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई जारी रखी।

इसके बाद ममता सरकार की ओर पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने बताया कि मुख्य सचिव, DM और पुलिस कमिश्नर मौके पर मौजूद नहीं थे, लेकिन उसके बाद भी विशेषाधिकार समिति ने उन्हें तलब किया। सिंघवी ने बताया कि इस तरह का ही एक मामला झारखंड का था, जहां अदालत ने राहत दी थी।

Supreme Court ने बंगाल सरकार की तरफ से पेश दोनों वकीलों की दलीलें सुनने के बाद विशेषाधिकार समिति की Notice पर अगली सुनवाई तक स्टे लगा दिया। सुप्रीम कोर्ट ने मामले में लोकसभा सचिवालय को नोटिस जारी करते हुए चार हफ्तों में जवाब मांगा है।

गौरतलब है कि बंगाल से BJP के Lok Sabha सांसद और बंगाल BJP के अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने विशेषाधिकार समिति को पत्र लिखकर Mamata Banerjee सरकार में पुलिस और सुरक्षा बलों पर अपने साथ दुर्व्यवहार एवं क्रूरता करने और जानलेवा चोट पहुंचाने का आरोप लगाते हुए बतौर सांसद अपने विशेषाधिकार के उल्लंघन और प्रोटोकॉल मानदंडों के उल्लंघन की शिकायत की थी।

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