Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने 80 साल के एक बुजुर्ग को बड़ी राहत देते हुए उनके बेटे को पिता की दो संपत्तियों को खाली करने का आदेश दिया है। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने मुंबई हाईकोर्ट के अप्रैल 2025 के फैसले को पलट दिया, जिसमें हाईकोर्ट ने भरण-पोषण न्यायाधिकरण के आदेश को रद्द कर दिया था। न्यायाधिकरण ने बेटे को अपने पिता की संपत्तियां वापस करने को कहा था।
क्या है मामला?
मुंबई के इस बुजुर्ग व्यक्ति ने अपनी दो संपत्तियों को अपने बच्चों के लिए छोड़ दिया था और पत्नी के साथ उत्तर प्रदेश चले गए थे। लेकिन उनके बड़े बेटे, जो एक व्यवसायी है, ने इन संपत्तियों पर कब्जा कर लिया और पिता को वहां रहने की इजाजत नहीं दी। 80 साल के बुजुर्ग और उनकी 78 साल की पत्नी ने जुलाई 2023 में भरण-पोषण और संपत्ति खाली कराने के लिए न्यायाधिकरण में अर्जी दी थी।
जून 2024 में न्यायाधिकरण ने बेटे को दोनों संपत्तियां पिता को सौंपने और 3,000 रुपये मासिक भरण-पोषण देने का आदेश दिया। इस फैसले को अपीलीय न्यायाधिकरण ने भी बरकरार रखा। लेकिन बेटे ने हाईकोर्ट में अपील की, जहां कहा गया कि न्यायाधिकरण को संपत्ति खाली कराने का अधिकार नहीं है। इसके खिलाफ बुजुर्ग ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण व कल्याण अधिनियम, 2007 का हवाला देते हुए कहा कि यह कानून बुजुर्गों की देखभाल और सुरक्षा के लिए बनाया गया है। अगर कोई बच्चा या रिश्तेदार बुजुर्ग के भरण-पोषण के दायित्व का उल्लंघन करता है, तो न्यायाधिकरण को उनकी संपत्ति से बेदखल करने का पूरा अधिकार है।
कोर्ट ने कहा कि इस कल्याणकारी कानून की व्याख्या उदारता से होनी चाहिए ताकि इसका मकसद पूरा हो। बेटे ने आर्थिक रूप से सक्षम होने के बावजूद अपने पिता को उनकी ही संपत्ति में रहने से रोका, जो वैधानिक दायित्व का उल्लंघन है।
कोर्ट की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि बुजुर्गों के हक में संपत्ति खाली कराने का अधिकार न्यायाधिकरण को है। इस फैसले से बुजुर्ग दंपती को उनकी संपत्ति वापस मिलेगी और उन्हें मासिक भरण-पोषण भी मिलेगा। कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को गलत ठहराते हुए 12 सितंबर 2025 के आदेश में बुजुर्ग के पक्ष में फैसला सुनाया।