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चुनाव में मुफ्त की योजनाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों से मांगा सुझाव, सुनवाई 22 अगस्त को

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट (SC) ने चुनाव में मुफ्त की योजनाओं की घोषणा वाले मामले की सुनवाई टाल दी। चीफ जस्टिस एनवी रमना (Chief Justice NV Ramana) की अध्यक्षता वाली बेंच ने 22 अगस्त को अगली सुनवाई करने का आदेश दिया।

Court ने सभी पक्षों को विशेषज्ञ कमेटी (Expert Committee) के गठन पर 20 अगस्त तक सुझाव दाखिल करने का निर्देश दिया।

लोक कल्याण का मतलब मुफ्त में चीजें देना

केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता (Solicitor General Tushar Mehta) ने सुनवाई के दौरान कहा कि अगर लोक कल्याण का मतलब मुफ्त में चीजें देना है तो यह अपरिपक्व समझदारी है। तब चीफ जस्टिस ने कहा कि राजनीतिक दलों को लोगों से वादा करने से नहीं रोका जा सकता।

क्या मुफ्त शिक्षा, पेयजल, न्यूनतम बिजली (Free Education, Drinking Water, Minimum Electricity) का यूनिट मुफ्त कहा जाएगा।

इसके साथ ही क्या इलेक्ट्रॉनिक गजट और कंज्यूमर प्रोडक्ट्स (Consumer Products) कल्याणकारी कहे जा सकते हैं। चीफ जस्टिस ने कहा कि Voters की मुफ्त चीजों पर राय अलग है।

हमारे पास मनरेगा (MANREGA) जैसे उदाहरण हैं। सवाल इस बात का है कि सरकारी धन का किस तरह से इस्तेमाल किया जाए। ये मामला उलझा हुआ है। आप अपनी अपनी राय दें।

मुफ्त की सुविधाएं कहकर इसके कल्याणकारी प्रभाव को खारिज नहीं किया जा सकता

इस मामले में आम आदमी पार्टी , कांग्रेस और डीएमके ने इन सुविधाओं के खिलाफ दायर याचिका में पक्षकार बनाने की मांग करते हुए याचिका दायर की है।

DMK ने कहा है कि कल्याणकारी योजनाएं सामाजिक और आर्थिक न्याय सुनिश्चित करती हैं और उसे मुफ्त की सुविधाएं नहीं कहा जा सकता है।

मुफ्त बिजली (Free Electricity) देने के कई प्रभाव होते हैं। बिजली से रोशनी, गर्मी और शीतलता प्रदान किया जा सकता है जो एक बेहतर जीवन स्तर में तब्दील होता है।

इससे एक बच्चे को अपनी पढ़ाई में मदद मिलती है। इसे मुफ्त की सुविधाएं कहकर इसके कल्याणकारी प्रभाव को खारिज नहीं किया जा सकता है।

Court को सभी पक्षकारों का पक्ष सुनना चाहिए

याचिका में केवल केंद्र सरकार और निर्वाचन आयोग (Central Government-Election Commission) को ही पक्षकार बनाया है जबकि इसमें राज्य सरकारों की नीति की भी समीक्षा होनी है। Court को सभी पक्षकारों का पक्ष सुनना चाहिए।

डीएमके ने कहा है कि केंद्र सरकार की टैक्स हॉलीडे और लोन माफ (Tax Holiday-Loan Waiver) करने की योजनाओं पर भी Court को विचार करना चाहिए।

केंद्र सरकार विदेशी कंपनियों को टैक्स हॉलीडे (Tax Holiday) देती है और प्रभावशाली उद्योगपतियों का लोन माफ करती है। यहां तक कि उद्योगपतियों को प्रमुख ठेके दिए जाते हैं।

आम आदमी पार्टी का कहना है कि

आम आदमी पार्टी ने मुफ्त सुविधाओं के बचाव में सुप्रीम कोर्ट (SC) में हलफनामा दायर किया है। आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) ने कहा है कि चुनावी भाषणों पर किसी तरह का प्रतिबंध संविधान से मिले अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का हनन होगा। नेताओं का अपने मंच से कोई वादा करना और चुनी हुई सरकार का उस पर अमल अलग-अलग बातें है।

Aam Aadmi Party का कहना है कि चुनावी भाषणों पर लगाम के जरिये आर्थिक घाटे को पाटने की कोशिश एक निरर्थक कवायद ही साबित होगी।

11 अगस्त को सुनवाई के दौरान कोर्ट ने निर्वाचन आयोग को इस बात के लिए फटकार लगाई थी कि अखबारों में उनका हलफनामा छप गया लेकिन कल दस बजे रात तक SC को नहीं मिला। जब ये अखबार में पहुंच सकता है तो Court क्यों नहीं आ सकता है।

अभिषेक मनु सिंघवी ने विशेषज्ञ कमेटी के गठन को गैरजरूरी बताया

Court ने सभी पक्षों से अपने सुझाव देने को कहा था। सुनवाई के दौरान Aam Aadmi Party की ओर से वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने विशेषज्ञ कमेटी के गठन को गैरजरूरी बताया था।

आम आदमी पार्टी ने मामले में खुद को भी पक्षकार बनाए जाने की मांग की है। आम आदमी पार्टी ने इस तरह की घोषणाओं को राजनीतिक पार्टियों का लोकतांत्रिक और संवैधानिक अधिकार बताया।

आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) ने इस मामले में याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय को BJP का सदस्य बताते हुए उनकी मंशा पर भी सवाल उठाए।

 

उल्लेखनीय है कि 6 अगस्त को अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई करते हुए SC ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया था कि वो रिजर्व बैंक, नीति आयोग समेत अन्य संस्थानों और विपक्षी राजनीतिक दलों के साथ लेकर विचार करके सरकार एक Report तैयार करे और कोर्ट के समक्ष रखे।

अश्विनी उपाध्याय (Ashwini Upadhyay) ने चुनाव के दौरान मतदाताओं को लुभाने के लिए मुफ्त में उपहार देने वाली घोषणाएं करनेवाले राजनीतिक दलों की मान्यता खत्म करने की मांग की है ।

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