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भारत-चीन में 16 घंटे चली 10वें दौर की सैन्य वार्ता, अब हॉट स्प्रिंग्स, गोगरा और डेप्सांग प्लेन से सेनाओं की वापसी पर फोकस

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नई दिल्ली: भारत और चीन के सैन्य कमांडरों के बीच शनिवार को सुबह 10 बजे शुरू हुई 10वें दौर की वार्ता लगभग 16 घंटे चली।

आधी रात को 2 बजे तक चली इस वार्ता में पूर्वी लद्दाख के ​​​हॉट स्प्रिंग्स, गोगरा और डेप्सांग प्लेन जैसे क्षेत्रों ​में भी सैन्य वापसी की प्रक्रिया शुरू करने पर फोकस किया गया।​

दोनों देशों के सैन्य कमांडरों के बीच पैन्गोंग झील के उत्तरी एवं दक्षिणी छोर ​की तरह इन विवादित इलाकों से भी सैनिकों, ​हथियारों तथा अन्य सैन्य उपकरणों को हटाए जाने पर गहन मंथन किया गया है।

पूर्वी लद्दाख में पैन्गोंग झील के दोनों किनारों पर सैन्य हथियारों और टुकड़ियों को पीछे हटाने के बाद भारत और चीन 10वें दौर की सैन्य वार्ता करने के लिए​ शनिवार को सुबह 10 बजे आमने-सामने बैठे।

यह कोर कमांडर स्तर की वार्ता ​​मोल्डो-चुशुल सीमा मीटिंग प्वाइंट पर शुरू हुई।

इस बैठक का मुख्य मुद्दा ​रक्षा मंत्री ने ​11 फरवरी को ​संसद के दोनों सदनों में बयान देते वक्त ही तय कर दिया था कि पैन्गोंग झील के उत्तरी और दक्षिण किनारों पर पूरी तरह डिसइंगेजमेंट होने के 48 घंटे के भीतर बाकी विवादित इलाकों पर भी चीन से बातचीत की जाएगी।​

इसलिए 16 घंटे की इस वार्ता में एलएसी के अन्य विवादित क्षेत्रों हॉट स्प्रिंग्स, गोगरा और डेमचोक में गतिरोध खत्म करने पर ही फोकस किया गया।

इस डेप्सांग प्लेन में कुल पांच पेट्रोलिंग प्वाइंट (पीपी) 10, 11, 11ए, 12 और 13 हैं जहां चीनी सेना भारतीय सैनिकों को गश्त करने से लगातार रोक रही है।

भारत चाहता है कि डेप्सांग के मैदानी इलाके से चीनी सेना वापस 12 किमी. अपनी सीमा में जाए और यहां एलएसी दोनों पक्षों के बीच व्यापक रूप से स्पष्ट हो।

यह वही इलाका है जहां पर चीन की सेना ने 2013 में भी घुसपैठ की थी और दोनों देशों की सेनाएं 25 दिनों तक आमने-सामने रही थींं।

चीनियों ने यहां पर नए शिविर और वाहनों के लिए ट्रैक बनाए हैं जिसकी पुष्टि जमीनी ट्रैकिंग के जरिये भी हुई है।

इसके अलावा बड़ी तादाद में सैनिक, गाड़ियां और स्पेशल एक्यूपमेंट इकठ्ठा किया है।

भारत ने मई के अंत में ही भांप लिया था कि चीन अगली लामबंदी डेप्सांग में कर सकता है, इसीलिए भारतीय सैनिकों ने भी तभी से इस क्षेत्र में अपनी मौजूदगी पुख्ता कर ली थी।

इसी तरह गोगरा-हॉट स्प्रिंग्स एरिया के पेट्रोलिंग-15 और पेट्रोलिंग पॉइंट-14 से चीनी सैनिक पीछे हटें हैं लेकिन अभी भी गोगरा के पेट्रोलिंग पॉइंट-17ए में दोनों देशों के सैनिक एक-दूसरे के करीब हैं।

हालांकि इस वार्ता के बारे में अभी दोनों सेनाओं की तरफ से कोई अधिकृत बयान नहीं जारी किया गया है लेकिन सूत्रों का कहना है कि पहले से तय एजेंडे के अनुसार भारत की ओर से चीन पर एलएसी के हॉट स्प्रिंग्स, गोगरा और डेप्सांग प्लेन क्षेत्रों से भी तेज गति से सैन्य वापसी पर जोर दिया गया।

सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक वार्ता में ​इन इलाकों से भी सेनाओं की वापसी प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के तौर-तरीकों पर चर्चा की गई है।

दसवें दौर की वार्ता में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व लेह स्थित 14वीं कोर के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल पीजीके मेनन ने किया।

उनके साथ वार्ता में आईटीबीपी के आईजी दीपम सेठ और विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव नवीन श्रीवास्तव भी शामिल रहे।

चीनी पक्ष का नेतृत्व मेजर जनरल लिउ लिन ने किया जो चीनी सेना के दक्षिणी शिनजियांग सैन्य जिले के कमांडर भी हैं।

दोनों देशों के बीच पिछले साल पांच मई, 2020 को पैन्गोंग झील क्षेत्र में हिंसक संघर्ष के बाद सैन्य गतिरोध शुरू हुआ था और फिर हर रोज बदलते घटनाक्रम में दोनों पक्षों ने भारी संख्या में सैनिकों तथा घातक अस्त्र-शस्त्रों की तैनाती कर दी थी।

गतिरोध के लगभग पांच महीने बाद भारतीय सैनिकों ने ​​‘ऑपरेशन स्नो लेपर्ड’​ के तहत ​​कार्रवाई करते हुए पैन्गोंग झील के दक्षिणी छोर पर मुखपारी, रेचिल ला और मगर हिल क्षेत्रों में सामरिक महत्व की कई पर्वत चोटियों पर तैनाती कर दी थी।

​ ​नौवें दौर की सैन्य वार्ता में भारत ने विशेषकर पैंगोंग झील के उत्तरी क्षेत्र में फिंगर 4 से फिंगर 8 तक के क्षेत्रों से चीनी सैनिकों की वापसी पर जोर दिया था।

अबतक पैंगोंग के उत्तर में फिंगर एरिया और दक्षिण के कैलाश रेंज क्षेत्र में चार-चरणों में हुई विस्थापन प्रक्रिया का दोनों सेनाओं ने भौतिक और इलेक्ट्रॉनिक निगरानी के माध्यम से सत्यापन भी कर लिया है।

पैंगोंग के दोनों किनारों पर 10 माह से दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने फायरिंग रेंज में थीं लेकिन भारतीय सेना विस्थापन प्रक्रिया पर पैनी नजर रखे हुए है। ​

अब तक की ​यह पूरी प्रक्रिया सेना की उत्तरी कमान के उन्हीं कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल वाईके जोशी की निगरानी में हुई है जिन्होंने ​​‘ऑपरेशन स्नो लेपर्ड’ में अहम भूमिका निभाई थी।​

​भारतीय सेना ने मानव रहित हवाई वाहनों (ड्रोन), वीडियोग्राफी, डिजिटल मैपिंग और भौतिक सत्यापन की मदद से विस्थापन प्रक्रिया की निगरानी की है।

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