Latest Newsझारखंडजन और जमीन की सेहत के लिए जरूरी है देशी गोवंश

जन और जमीन की सेहत के लिए जरूरी है देशी गोवंश

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लखनऊ: देशी गायों के संरक्षण और संवर्धन पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का शुरू से जोर है।

जन और जमीन की सेहत के लिए ये जरूरी भी है। मसलन घर में देशी गाय है तो पूरे परिवार की सेहत सलामत रहेगी।

इसका दूध विदेशी प्रजाति की गायों की तुलना में सेहत के लिए बेहतर है।

जैविक खेती पर सरकार का खासा जोर है। उसके लिए कंपोस्ट, वर्मी कंपोस्ट और बायोमृत के रूप में बुनियादी कृषि निवेश, गोबर और गोमूत्र से ही मिलेगा।

अगर गोआश्रयों के गोबर और गोमूत्र के सहउत्पाद बनने लगे और लोग जैविक खेती में इनका प्रयोग करने लगें तो कालांतर में सरकार की मंशा के अनुसार ये गोशालाएं आत्मनिर्भर हो जाएंगी।

पहली बार किसी मुख्यमंत्री ने गोपाष्टमी को प्रदेशव्यापी पर्व में बदलकर गोमाता के प्रति अपनी प्रतिबद्घता जाहिर कर दी।

मुख्यमंत्री की पहल पर देशी गोवंश के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए हो रहे कामों के पीछे एक वैज्ञानिक सोच भी है।

हममें से अधिकांश संपूर्ण आहार और बेहतर सेहत के लिए विदेशी नस्ल के जिन गायों के दूध का सेवन करते हैं, वह लाभ से अधिक नुकसानदेह है।

दरअसल इन गायों का दूध ए-1 प्रकार का होता है। इसमें बीटाकैसोमार्फिन मिलता है।

एक लीटर ए-1 दूध में 24-32 ग्राम कैसीन होता है। इसमें करीब दो चम्मच (9़12 ग्राम ) बेटाकैसोमार्फिन होता है।

अफीम कुल के इस तत्व के सेवन से गठिया, टाइप-1 मधुमेह, कई तरह के हृदय रोग, कोलाइटिस, परकिंसन और सीजोफ्रेनिया जैसे रोगों के प्रति संवेदनशील बनाता है।

देशी गाय का दूध ए-2 प्रकार का होता है। जो सेहत के लिए लाभदायक है।

एनएबीजीआरआई (नेशनल ब्यूरो आफ एनीमल जेनेटिक रिसोर्सेज-करनाल) ने 22 प्रजाति के देशी नस्ल की गायों पर शोध के बाद पाया कि इनमें से सवार्धिक दूध देने वाली पांच प्रजातियां (लाल सिंधी, शाहीवाल, थरपाकर, गिर और राठी) का दूध सौ फीसद ए-2 प्रकार का होता है।

औरों में ये मात्रा 94 फीसद तक होती है, पर जर्सी एवं फ्रीजियन में यह महज 60 फीसदी ही होता है।

आल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेंज जैसे देश के कुछ शीर्ष चिकित्सकीय संस्थाओं ने भी अपने शोध में देशी प्रजाति की गायों के दूध को बेहतर माना है।

न्यूजीलैंड में हुए शोध में भी सेहत के लिए ए-2 दूध बेहतर पाया गया।

गाय की उत्पत्ति मध्यपूर्व एशिया है। करीब आठ से दस हजार पहले जब किन्ही वजहों से ये अपेक्षात ठंडे यूरोप में पहुंची तो इनके डीएनए में आए बदलाव के नाते इनका दूध भी ए-2 से ए-1 में बदल गया।

दूध में मिलने वाले पोषक तत्व एमीनो एसिड-21, फैटी एसिड-6, विटामिन्स-6, एंजाइम-8, खनिज-25, फॉस्फोरस के यौगिक-4।

इसके अलावा ए-2 दूध में ओमेगा-6 फैटी एसिड अपेक्षाकृत अधिक होता है। प्राकृतिक रूप से कैल्शियम का यह बेहतरीन स्रोत है।

यही वजह है कि अब तक इच्छुक पशुपालकों को गोआश्रयों से सशर्त करीब 7000 गायें बंट चुकी है।

अतिकुपोषित परिवारों को दी गयी 1071 गायें अलग से।

इनको पालने वालों को सरकार रोज 30 रुपये के हिसाब से हर माह 900 रुपये का खर्च भी देती है।

उप्र पशुधन विकास परिषद के पूर्व जोनल प्रबंधक डॉ बी.के. सिंह का कहना है कि श्वेत क्रांति के लिए बिना सोचे-समझे अपनाई गई प्रजनन नीति ने देशी गायों के साथ हमारी सेहत को भी संकट में डाल दिया।

सच यह है कि विदेशी नहीं, हमारी गिर प्रजाति के नाम है दुनिया में सबसे अधिक दूध देने का रिकार्ड।

दुर्भाग्य यह है कि प्रजाति हमारी है और रिकार्ड ब्राजील ने बनाया है।

यहां इस प्रजाति की शेरा नामक गाय के नाम एक दिन में 62़ 33 लीटर दूध देने का रिकार्ड है।

इसके पूर्व इसी का रिकार्ड 59़ 947 लीटर का था। ब्राजील में गिर प्रजाति की एक बेहतर गाय एक ब्यांत में करीब 5500 लीटर दूध देती है जबकि भारत में यह औसत सिर्फ 980 लीटर है।

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