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सुप्रीम कोर्ट ने पूछा, कर्ज में डूबे राज्य में Free की योजनाओं का अमल रोका जा सकता है या नहीं?

नई दिल्ली: Supreme Court ने चुनाव के दौरान मतदाताओं को लुभाने के लिए मुफ्त में उपहार देने वाली घोषणाएं करने वाले राजनीतिक दलों (Political parties) की मान्यता खत्म करने की मांग पर सुनवाई करते हुए केंद्र से कहा है कि वह वित्त आयोग से पता लगाए कि पहले से कर्ज में डूबे राज्य में मुफ्त की योजनाओं का अमल रोका जा सकता है या नहीं। मामले की अगली सुनवाई 3 अगस्त को होगी।

कोर्ट ने 25 जनवरी को Central government और निर्वाचन आयोग को नोटिस जारी किया था। याचिका BJP नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने दायर की है।

याचिका में कहा गया है कि राजनीतिक दल मतदाताओं को गलत तरीके से अपने पक्ष में लुभाने के लिए मुफ्त में उपहार देने की घोषणाएं करती हैं।

ऐसा करना स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए एक बाधा है। ऐसा करना भारतीय दंड संहिता की धारा 171बी और 171सी के तहत अपराध है।

सरकार लोगों को 16 घंटे की बिजली भी देने में सक्षम नहीं होते

याचिका में मांग की गई है कि कोर्ट निर्वाचन आयोग (Court Election Commission) को दिशानिर्देश जारी करे कि वो राजनीतिक दलों के लिए एक अतिरिक्त शर्त जोड़े कि वो मुफ्त में उपहार देने की घोषणाएं नहीं करेंगी।

याचिका में कहा गया है कि आजकल एक राजनीतिक फैशन बन गया है कि राजनीतिक दल अपने घोषणापत्र में मुफ्त बिजली की घोषणा करते हैं।

ये घोषणाएं तब भी की जाती हैं जब सरकार लोगों को 16 घंटे की बिजली भी देने में सक्षम नहीं होते हैं।

याचिका में कहा गया है कि मुफ्त की घोषणाओं (Free Announcements) का लोगों के रोजगार, विकास या कृषि में सुधार से कोई लेना-देना नहीं होता है लेकिन मतदाताओं को लुभाने के लिए ऐसी जादुई घोषणाएं की जाती है।

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