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महिला के स्त्रीधन पर उसका पूरा हक, पति भी नहीं हो सकता हिस्सेदार, सुप्रीम कोर्ट ने…

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Women Rights on her Property : स्त्री की अपनी संपत्ति (Property) के मामले में देश की शीर्ष अदालत Supreme Court ने बड़ा फैसला सुनाया है।

देश में चल रहे लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election) के बीच कुछ शब्द बार-बार सुनाई पड़ रहे हैं, इसमें मंगलसूत्र (Mangal Sutra) और स्त्रीधन (Women Property) आम हैं।

इस बीच Supreme Court ने स्त्रीधन को लेकर अहम फैसले में कहा कि महिला का स्त्रीधन उसकी पूर्ण संपत्ति है। इस पूर्ण संपत्ति को अपनी मर्जी से खर्च करने का महिला को पूरा अधिकार है।

इस स्त्री धन में पति (Husband) कभी भी हिस्सेदार नहीं हो सकता, लेकिन संकट के समय पत्नी की रजामंदी से इसका इस्तेमाल कर सकता है।

इन सभा चीजों पर महिलओं का आधिकार

जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ ने स्त्रीधन को लेकर दायर वैवाहिक विवाद पर सुनवाई कर कहा था कि महिला को अपने स्त्रीधन पर पूरा अधिकार है, इसमें शादी से पहले, शादी के दौरान या बाद में मिलीं हुईं सभी चीजें शामिल हैं, जैसे कि माता-पिता, ससुराल वालों, रिश्तेदारों और दोस्तों से मिले गिफ्ट, धन, गहने, जमीन और बर्तन आदि शामिल है।

क्या है स्त्रीधन ?

ये समझना जरूरी होता है कि आखिर स्त्रीधन क्या है। इसके दायरे में क्या-क्या आता है?

दरअसल स्त्रीधन एक कानूनी टर्म है, जिसका जिक्र हिंदू धर्म में देखने को मिलता है। स्त्रीधन का अर्थ है महिला के हक का धन, संपत्ति, कागजात और अन्य वस्तुएं।

एक आम धारणा ये है कि महिलाओं को शादी के दौरान जो चीजें उपहार स्वरूप मिलती हैं, उन्हें ही स्त्रीधन माना जाता है। लेकिन ऐसा नहीं है।

स्त्रीधन में किसी महिला को बचपन से लेकर भी जो चीजें मिलती हैं, वह भी स्त्रीधन के दायरे में आती हैं।

इसमें नकदी से लेकर सोना, हर तरह के तोहफे, संपत्तियां और बचत भी शामिल हैं।

आसान शब्दों में शादी के दौरान या शादी के बाद मिले इस तरह के उपहारों को ही स्त्रीधन माना जाए।

स्त्रीधन पर अविवाहित स्त्री का भी कानूनी अधिकार है। इसमें वे सारी चीजें आती हैं, जो किसी महिला को बचपन से लेकर मिलती रही है।

इसमें छोटे-मोटे तोहफे, सोना, कैश, सेविंग्स से लेकर तोहफे में मिली प्रॉपर्टी भी आती है।

किस कानून के तहत है स्त्रीधन का अधिकार?

हिंदू महिला का स्त्रीधन का हक हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 14 और हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 27 के तहत आता है।

यह कानून शादी से पहले, शादी के समय या शादी के बाद महिला को स्त्रीधन अपने पास रखने का पूरा हक देता है। महिला चाहे तब स्‍त्रीधन को अपनी मर्जी से किसी को दे सकती है या बेच सकती है।

इसके साथ ही घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 की धारा 12 भी महिलाओं को इसतरह के मामलों में स्त्रीधन का अधिकार देती है, जहां वे घरेलू हिंसा (Domestic Violence) का शिकार होती हैं। वे इन कानूनों की मदद से अपना हक वापस ले सकती हैं।

लेकिन कई मामले होते हैं, जहां मंगलसूत्र को छोड़कर ज्यादातर स्त्रीधन महिला के ससुरालवाले रख लेते हैं, ये कहकर कि वे संभालकर रखने वाले हैं।

ऐसी स्थिति में कानून उन्हें स्त्रीधन का ट्रस्टी मानता है। जब भी महिला उन चीजों को मांगती है, तब महिला को देने से मना नहीं किया जा सकता।

स्त्रीधन और दहेज दो अलग-अलग चीजें हैं। दहेज (Dowry) मांगस्वरूप दिया या लिया जाता है जबकि स्त्रीधन में प्रेमस्वरूप चीजें महिला को दी जाती हैं।

अगर स्‍त्रीधन को ससुराल पक्ष ने जबरन अपने कब्‍जे में रखा है, तब महिला इसके लिए दावा कर सकती है।

अगर पति के खिलाफ दहेज प्रताड़ना का केस लगा है, तब उसके साथ में स्‍त्रीधन को लेकर अलग से मामला दर्ज कराया जा सकता है।

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