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कोसी नदी की दिशा बदली, पर नहीं बदली यहां की लोगों की दशा

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सुपौल: लहरों पर जब आठ साल पहले मौत दौड़ पड़ी तब से अब तक उस राह में पड़ने वाले हर गांव सशंकित रहता है। कोसी त्रासदियों के गाथा का दूसरा नाम है। इसमे कुसहा भी एक कड़ी थी।

खर्च के नाम पर अरबों-खरबों रुपये के वारे-न्यारे हो गये और कोसी के कछार पर लंदन स्थित टैम्स नदी के सपने दिखाने वाले खुद भी एक के बाद एक राजनीति क्षितिज से गायब हो गए।

विगत सालों में विस्थापितों के नाम पर राजनीति हुई तो राहत के नाम पर खुलेआम लूट हुई। सदन में इसका शोर उठा भी तो तत्क्षण गुम भी हो गया।

भारत सेवक समाज का उदाय ललित नारायण मिश्र के सपने,गुणानन्द ठाकुर जैसे समाजवादी जननेता का संघर्ष राजेन्द्र मिश्र,लहटन चौधरी,रमेश झा परमेशवर कुंवर और बाद की पीढी के अमरेंद्र मिश्र सभी के प्रयास से नदी की चंचलता पर लगाम लगने की कोशिश की गई।

तटबंधों में कैद कोसी ने लगभग दो से चार वर्ष के अंतराल पर कैद से मुक्त होने की कोशिश भी की।

राष्टीय-अंतराष्ट्रीय फलक पर इस नदी की विभीषिका विख्यात हो गई पुर्नवास के लिये समय-समय पर विभिन्न संगठनो ने शहर-शहर गांव-गांव पैदल यात्राएं की और सभाएं भी बुलाई गई।लेकिन इसका समुचित निराकरण नहीं हो सका।

कोसी बैरेज से 125वें किलोमीटर कोपरिया तक न तो कोसी की दशा सुधरी है। इन इलकों में कोसी का भय तब भी था और आज भी हद तक बना हुआ है।

बीते साल नेपाल के सिंधुपाल में सोन कोसी की धारा के बीच चट्टानों के अवरुद्ध होने से पूरा इलाका हाइ अलर्ट पर चला गया अंदर बसे लोगों को त्राहिमाम संदेश देते बाहर निकाला गया लेकिन सौभग्य से कुछ नहीं हुआ और दो दिनो के बाद ही सबों को ठीक हो गया

बार-बार बदली है कोसी की अपनी धारा

कोसी ने बार-बार अपनी धाराओं को बदला है। अररिया,पूर्णिया,कटिहार,मधेपुरा,सुपौल,खगड़िया और सहरसा तक सभी जिलों को कोसी ने प्रभावित किया।

अब इसका चेहरा भी बदल गया है और नदी खुशियाली के गीत नहीं गा पाते।

इसकी आंचल में दूब या धान कम दिखते है इसकी धारा में चेचरा,कबइ,रेहू,बुआरी,व बचवा आदि मछलियां कम इठलाती है।

यह सच है की कोसी पूर्व बिहार के जिलों का सामजिक,आर्थिक स्वरूप इसी पर निर्भर है और भविष्य भी इसी पर प्रभावित होता है बाढ़ के बाद की गाद खेत के लिये जीवन है

कोसी महासेतु बनने से विकास के मार्ग खुल गए

कोसी के सम्बन्ध में जदयू नेता नंदकिशोर सिंह ,जीवनेशवर साह मनोज कुमार सिंह,सोनेलाल मंडल नथुनी मंडल, जीवछ मेहता, मनोज कुमार सिंह कहते है की कोसी मै महासेतु बनने के बाद सैकड़ो एकड़ भूमि बंजर होने से बच गई कोसी महासेतु बनने से इस क्षेत्र में विकाश के मार्ग खुल गये।पोरबंदर से असम तक आवाजाही शुरू होने से आर्थिक प्रभाव भी बढ़े है और दूरी भी घटी है।

खेती-बड़ी में उन्नत तकनीकी बदलाव आये है।कोसी ने पहली बार वर्ष 1963 में अपने विनाशकारी स्वरूप का परिचय दिया।तब से लगभग आठ बार उसने रौद्र रूप दिखाया

अब तक आठ बार तटबंध तोड़ चुकी है कोसी नदी

कोसी ने 1963 में नेपाल के डलवा के समीप पश्चिम तटबंध को तोड़ दिया था। उस समय नेपाल के इस गांव सहित कुनौली,कमलपुर,डगमरा सहित अन्य पंचायत कोसी के बाढ़ से प्रभावित हुए थे।

1967 में कुनौली ,1968 में जमालपुर ,1971 में भरनिया ,1980 में बहुअरवा,1984 में नवहट्टा, 1991 में जोगनिया,हनुमाननगर नेपाल और 2008 में कुसहा में कोसी नदी ने बांध तोड़ते हुए भारी तबाही मचाई थी।

इसमे लगभग सात लाख की आबादी प्रभावित हुई। कई लोग बेघर हो गये और कई की जान भी चली गयी थी।

1917 से लेकर 1970 में कोसी ने स्वयं आपनी स्वतंत्र धारा बनाई।पहले कोसी सौरा नदी के संग बह रही थी।

उसके बाद पश्चिम की और खिसका।1807 से 1838 तक लच्छा धारा संग बहने लगी।

पुन:.1840 से1873 तक कोसी ने हहिया धारा का सहारा लिया और तबाही का दस्तक देने लगी।

1870 से1892 तक कोसी सुरसर बड़गांव,मुरलीगंज होते हुए कुरसैला के रास्ते बहती रही लेकिन स्व:ललित नारायण मिश्र के प्रयास से 1953 में बांध बनाने की स्वीकृति मिली।

साल 1955 से कार्य शुरू हुआ और 31 मार्च 1963 को वर्तमान कोसी बैरज से कोसी की धारा को नियंत्रित किया जाने लगा और इसे तटबंध में कैद कर लिया गया।लेकिन उसके बाबजूद भी कोसी अनियंत्रित हैं।

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