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भारत में कोरोना ने बदल डाले हैं 771 रूप, अब एक नया ‘डबल म्‍यूटंट’ वैरिएंट मिला

नई दिल्ली: कोरोना के देश के 18 राज्‍यों के 10,787 सैम्‍पल्‍स में कुल 771 वैरिएंट्स मिले हैं। इनमें 736 यूके, 34 साउथ अफ्रीकन और एक ब्राजीलियन है।

अब भारत में कलेक्‍ट किए गए सैम्‍पल्‍स में कोरोना वायरस का एक नया ‘डबल म्‍यूटंट’ वैरिएंट मिला है।

नैशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल के डायरेक्‍टर सुजीत कुमार ने कहा कि जिन राज्‍यों में केसेज तेजी से बढ़े हैं, वहां अलग म्‍यूटेशन प्रोफाइल का पता चला है।

लेकिन वो वैरिएंट्स डिटेक्‍ट किए गए हैं, वे पिछले छह से आठ महीनों में सबसे ज्‍यादा फैले वाले वैरिएंट्स में शामिल हैं।

 जो नया ‘डबल म्‍यूटंट’ वैरिएंट है, वो करीब 15-20 फीसदी सैम्‍पल्‍स में मिला है।

यह पहले से कैटलॉग किए गए वैरिएंट्स से मैच नहीं करता। इसे महाराष्‍ट्र के 206 सैम्‍पल्‍स में पाया गया जबकि दिल्‍ली के नौ सैम्‍पल्‍स में। सिंह के मुताबिक, नागपुर में करीब 20 फीसदी सैम्‍पल इसी वैरिएंट के हैं।

हालांकि उन्‍होंने कहा कि इस 20फीसदी को मामलों से जोड़कर देखना संभव नहीं है।

किसी भी वायरस का एक जेनेटिक कोड होता है। इसे एक तरह का मैनुअल समझें जो वायरस को बताता है कि उसे क्‍या और कैसे करता है। वायरस के जेनेटिक कोड में लगातार छोटे-छोटे बदलाव होते रहते हैं।

अधिकतर बेअसर होते हैं मगर कुछ की वजह से वायरस तेजी से फैलने लगता है या घातक हो जाता है।

बदले हुए वायरस को वैरिएंट कहते हैं। जैसे यूके और साउथ अफ्रीका वाले वैरिएंट को ज्‍यादा संक्रामक और घातक माना जा रहा है।

आसान भाषा में कहें तो ‘डबल म्‍यूटेशन’ तब होता है जब वायरस के दो म्‍यूटेटेड स्‍ट्रेन्‍स मिलकर एक तीसरा स्‍ट्रेन बनाते हैं।

 भारत में जो ‘डबल म्‍यूटंट’ वैरिएंट है वो ई484क्यू और एल452 आर म्‍यूटेशंस का कॉम्बिनेशन है।

ई484क्यू और एल452आर को अलग से वायरस को और संक्रामक व कुछ हद तक वैक्‍सीन से इम्‍युन पाया गया है।

 वायरस में बदलाव आते रहते हैं मगर अधिकतर की वजह से ज्‍यादा परेशानी नहीं होती। लेकिन कुछ म्‍यूटेशंस के चलते वायरस ज्‍यादा संक्रामक या घातक हो सकता है।

डबल म्‍यूटेशन की वजह से वायरस के भीतर इम्‍युन रेस्‍पांस से बचने की क्षमता आ जाती है यानी ऐंटीबॉडीज उसका कुछ नहीं बिगाड़ पातीं।

जहां तक वैक्‍सीन के इस नए वैरिएंट पर असर की बात है तो अभी तक ऐसी कोई वजह नहीं मिली है जिससे ये माना जाए कि टीके इनसे सुरक्षा देने में नाकामयाब होंगे।

एक बड़ा रिस्‍क ये है कि पहले से बने टीकों का वैरिएंट पर असर होगा या नहीं, यह नहीं पता होता।

अभी तक यही पता लगा है कि नया स्‍ट्रेन असरदार तो है मगर शायद सुपरस्‍प्रेडर नहीं है।

घातक है, इसके भी सबूत अबतक नहीं मिले हैं। वैज्ञानिक और डेटा मिलने के बाद कुछ स्‍पष्‍ट करने की बात कह रहे हैं।

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