भारत

केंद्रीय विद्यालयों में अनिवार्य प्रार्थना बंद करने की मांग

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट (SC) में एक दिलचस्प वाकये में जस्टिस इंदिरा बनर्जी (Justice Indira Banerjee) ने कहा कि मुझे अब भी अपने School की असेंबली याद है। जिस स्कूल में मैं पढ़ती थी, वहां भी एकसाथ खड़े होकर प्रार्थना करते थे।

दरअसल, केंद्रीय विद्यालयों में अनिवार्य प्रार्थना की परंपरा खत्म करने की मांग पर सुनवाई चल रही थी, जिसमें जस्टिस बनर्जी ने ये दिलचस्प वाकया बताया।

इस पर याचिकाकर्ता के वकील कॉलिन गोंजाल्वेस ने कहा कि केंद्रीय विद्यालय (Central School) में पढ़ रहे एक छात्र की Maa की गुहार है कि अनिवार्य प्रार्थना बंद की जाए।

इस पर जस्टिस बनर्जी ने कहा कि लेकिन स्कूल में हम जिस नैतिक मूल्यों की शिक्षा लेते और पाठ पढ़ते हैं वो जीवन भर हमारे साथ रहते हैं।

मेरे घर में असतो मा सद्गमय नियमित रूप से गूंजता है

गोंजाल्वेस ने कहा कि हमारी प्रार्थना एक खास प्रार्थना को लेकर है। ये सबके लिए समान नहीं हो सकती है। सबकी उपासना की पद्धति अलग-अलग है, लेकिन उस स्कूल में असेंबली के समय सामूहिक प्रार्थना न बोलने पर दंड भी मिलता है।

गोंजाल्वेस ने कहा कि मैं जन्मजात ईसाई हूं, लेकिन मेरी बेटी हिंदू धर्म का पालन करती है। मेरे घर में असतो मा सद्गमय नियमित रूप से गूंजता है।

याचिका एक वकील विनायक शाह ने दायर की है। याचिका में कहा गया है कि सरकारी अनुदान पर चलने वाले स्कूलों में किसी खास धर्म को प्रचारित करना उचित नहीं।

याचिका में कहा गया है कि छात्र चाहे किसी भी धर्म के हों, उन्हें मार्निंग एसेंबली (Morning Assembly) में हिस्सा लेना होता है और प्रार्थना करना पड़ता है।

उस प्रार्थना में कई सारे संस्कृत के भी शब्द हैं। संस्कृत में असतो मा सद्गमय! तमसो मा ज्योतिर्गमय! मृत्योर्मामृतं गमय! को शामिल किया गया है।

इस प्रार्थना में और भी ऋचाएं शामिल हैं, जिनमें एकता और संगठित होने का संदेश है। जैसे, ओम् सहनाववतु, सहनौ भुनक्तु: सहवीर्यं करवावहै, तेजस्विना वधीतमस्तु मा विद्विषावहै!

याचिका में कहा गया है कि मार्निंग एसेंबली (Morning Assembly) में शिक्षक सभी छात्रों पर नजर रखते हुए देखते हैं कि कोई भी छात्र ऐसा न हो जो हाथ जोड़कर प्रार्थना न करे।

अगर ऐसा कोई छात्र मिलता है, जो हाथ जोड़कर प्रार्थना नहीं करता पाया गया तो उसे पूरे स्कूल के सामने सजा दी जाती है।

याचिका के मुताबिक ये प्रार्थना संविधान की मूल भावना के खिलाफ है, जो हर नागरिक को अपना धर्म मानने की आजादी देता है।

केंद्रीय विद्यालय (Central School) के प्रार्थना के जरिये अल्पसंख्यक और नास्तिक छात्रों पर भी ये प्रार्थना लादना गलत है।

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