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कर्नाटक हिजाब मामला : सुप्रीम कोर्ट ने 16 सितंबर तक सुनवाई पूरी करने के दिए संकेत

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट (SC) ने कर्नाटक हिजाब मामले (Karnataka Hijab Cases) पर 16 सितंबर तक सुनवाई पूरी करने के संकेत दिए हैं।

जस्टिस हेमंत गुप्ता की अध्यक्षता वाली बेंच ने स्कूल-कॉलेजों (Schools-Colleges) में हिजाब की अनुमति मांग रहे पक्षकार को 14 सितंबर तक तक दलील पूरी करने के लिए कहा। राज्य सरकार (State Government) को जवाब के लिए दो दिन दिए जाएंगे।

आज सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील सलमान खुर्शीद ने कहा कि कर्नाटक हाई कोर्ट (HC) का फैसला कई मायनों में सही है लेकिन उसे लागू करने में गलती है।

खुर्शीद ने कहा कि ये मामला धर्म, संस्कृति और गरिमा से जुड़ा हुआ है। खुर्शीद ने कोर्ट को बुर्का, हिजाब और जिलबाब की तस्वीरें कोर्ट को दिखाई और उनका अंतर समझाया। उन्होंने कहा कि संस्कृति महत्वपूर्ण है, क्योंकि ये पहचान से जुड़ा है।

कुछ देशों की मस्जिदों में सिर नहीं ढका जाता है

खुर्शीद ने कहा कि SC ने देश को जो उन्नत विचार दिए हैं, उन्हें छीना नहीं जा सकता है। अगर हम कोर्ट में हैं तो हमें ड्रेस कोड मानना होगा।

इसका मतलब ये नहीं है कि इस ड्रेस कोड के अलावा वो कपड़ा नहीं पहन सकता जो हमारी संस्कृति या धर्म का हिस्सा हों। उन्होंने कहा कि कुरान के मुताबिक हिजाब एक पर्दा है, जो धर्म या संस्कृति का हिस्सा है। उन्होंने कहा कि यूपी या उत्तर भारत में घूंघट जरूरी है।

जब आप गुरुद्वारा जाते हैं तो लोग सिर को ढकते हैं। ये संस्कृति है। कुछ देशों की मस्जिदों में सिर नहीं ढका जाता है लेकिन भारत में हर जगह सिर ढका जाता है। यही संस्कृति है।

सुनवाई के दौरान 8 सितंबर को याचिकाकर्ता की ओर से वकील देवदत्त कामत ने कहा था कि मौलिक अधिकारों पर प्रतिबंध तभी लग सकता है, जब वो कानून व्यवस्था, नैतिकता, स्वास्थ्य के खिलाफ हो लेकिन हिजाब के मामले में ऐसा नहीं है। देवदत्त कामत ने दलील दी थी कि मैं जनेऊ पहनता हूं।

वरिष्ठ वकील के परासरन भी ये पहनते हैं लेकिन क्या ये किसी भी तरह कोर्ट के अनुशासन का उल्लंघन है। तब Court ने कहा था कि आप कोर्ट में ड्रेस की तुलना School Dress से नहीं कर सकते हैं। कल धवन ने पगड़ी का हवाला दिया था लेकिन पगड़ी भी धार्मिक पोशाक नहीं है।

SC ने राष्ट्रगान पर भी एक आदेश दिया था

सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट (SC) ने 7 सितंबर को कहा था कि राइट टू ड्रेस अगर मौलिक अधिकार है तो राइट टू अन-ड्रेस भी मौलिक अधिकार होगा।

सुनवाई के दौरान हिजाब समर्थक पक्ष के वकील देवदत्त कामत ने कहा था सरकार छात्रों के अधिकार की रक्षा में असफल है।

यूनिफॉर्म पहनने के बाद सिर पर उसी रंग का स्कार्फ रखने में क्या गलत है। कोई बुर्का पहनने की मांग नहीं कर रहा है। उन्होंने कहा था कि SC ने राष्ट्रगान पर भी एक आदेश दिया था।

इस पर जस्टिस सुधांशु धुलिया ने कहा था कि हां, उस फैसले में माना गया था कि राष्ट्रगान के समय खड़े होना सम्मान है। उसे गाना जरूरी नहीं।

तब कामत ने कहा कि केंद्रीय विद्यालय में मुस्लिम लड़कियों को स्कार्फ पहनने की अनुमति है। कर्नाटक के स्कूलों में ऐसा क्यों नहीं हो सकता है।

उन्होंने कहा था कि यह देखना होगा कि क्या स्कूल के भीतर संविधान की धारा 19 (व्यक्तिगत स्वतंत्रता) या 25 (धर्म के पालन का अधिकार) लागू नहीं होता है।

कामत ने दक्षिण अफ्रीका, अमेरिका, कनाडा और इंग्लैंड के भी कुछ मामलों का हवाला दिया। तब जस्टिस गुप्ता ने कहा कि इन देशों से भारत की तुलना नहीं हो सकती। उनकी परिस्थितियां अलग हैं। इस पर कामत ने कहा कि मैं सिर्फ कुछ उदाहरण दे रहा हूं।

कोर्ट ने 29 अगस्त को कर्नाटक सरकार (Government of Karnataka) को Notice जारी किया था। कर्नाटक की दो छात्राओं ने कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High Court) के आदेश को सुप्रीम कोर्ट (SC) में चुनौती दी है।

इस मामले में हिंदू सेना के नेता सुरजीत यादव ने भी कैविएट दाखिल कर SC से हाई कोर्ट के फैसले पर रोक का एकतरफा आदेश न देने की मांग की है।

गौरतलब है कि 15 मार्च को कर्नाटक हाई कोर्ट ने हिजाब को इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं कहते हुए शिक्षण संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध के सरकार के निर्णय को बरकरार रखा। हाईकोर्ट के इसी आदेश को SC में चुनौती दी गई है।

हिजाब मामले में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (Muslim Personal Law Board) ने भी सुप्रीम कोर्ट (Muslim Personal Law Board) का दरवाजा खटखटाया है।

उलेमाओं की संस्था समस्त केरल जमीयतुल उलेमा ने भी याचिका दाखिल की है। इन याचिकाओं में कहा गया है कि कर्नाटक हाई कोर्ट का फैसला इस्लामिक कानून की गलत व्याख्या है। मुस्लिम लड़कियों के लिए परिवार के बाहर सिर और गले को ढक कर रखना अनिवार्य है।

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