झारखंड

झारखंड में यहां ग्रामीण बिना पूंजी लगाए कर रहे बंपर कमाई

आर्थिक लाभ होने से ग्रामीण काफी उत्साहित

लातेहार: लातेहार के ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए महुआ वरदान साबित हो रहा है।

ग्रामीण बिना कोई पूंजी लगाए ही बंपर आमदनी कर रहे हैं। आर्थिक लाभ होने से ग्रामीण काफी उत्साहित हैं।

अनुमान लगाया जा रहा है कि इस वर्ष महुआ से लातेहार के ग्रामीणों को 50 करोड़ रुपये से भी अधिक आमदनी होगी।

लातेहार में होता है सबसे अधिक महुआ का उत्पादन

महुआ के उत्पादन करने वाले इलाके में लातेहार जिला सबसे पहला स्थान रखता है। बताया जाता है कि यहां महुआ के पेड़ की संख्या दो लाख से भी अधिक है।

महुआ का सीजन आने पर एक महुआ के पेड़ से कम से कम 60 से लेकर 80 किलो तक महुआ का फल मिल जाता है।

कुल मिलाकर जिले में डेढ़ लाख क्विंटल से भी अधिक मात्रा में महुआ का उत्पादन हो जाता है।

किसान महेंद्र उरांव ने बताया कि महुआ का पेड़ जिस प्रकार का है, उसमें फल उसी के अनुपात में आता है।

यदि पेड़ छोटा है तो उसमें 30 से 40 किलो तक महुआ आ जाता है लेकिन बड़े पेड़ में एक क्विंटल से भी अधिक महुआ का उत्पादन हो जाता है।

50 रुपये प्रति किलो की दर से बिक रहा महुआ

खुले बाजार में इन दिनों महुआ की कीमत 50 रुपये प्रति किलोग्राम निर्धारित है। यह कीमत दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जाता है।

बरसात के बाद इसकी कीमत काफी अधिक हो जाती है। इसका सबसे अच्छा लाभ व्यवसाई वर्ग के लोगों को होता है।

व्यवसाई वर्ग के लोग ग्रामीणों से महुआ खरीद कर उसे स्टॉक कर देते हैं और बाद में जब कीमत बढ़ती है तो इसे भेज देते हैं।

ऐसे में ग्रामीणों को साथ-साथ व्यवसायियों को भी महुआ से अच्छी आमदनी हो जाती है।

लातेहार के प्रसिद्ध महुआ व्यवसाय निर्दोष गुप्ता ने बताया कि लातेहार जिले में 100 से अधिक ऐसे व्यवसाई हैं जो 100 टन से भी अधिक महुआ की खरीदारी करते हैं।

वहीं, कई ग्रामीण भी अब महुआ को शुरुआती समय में ना बेच कर उसे स्टॉक कर लेते हैं और कीमत बढ़ने पर उसकी बिक्री करते हैं।

उन्होंने कहा कि महुआ से जहां ग्रामीणों को अच्छी आमदनी हो जाती है, वहीं व्यवसाई वर्ग भी इससे कमाई कर लेते हैं।

शराब बनाने में होता है उपयोग

महुआ का उपयोग मुख्य रूप से शराब बनाने में होता है। लातेहार से महुआ की खरीदारी करने के बाद व्यापारी इसे छत्तीसगढ़ उड़ीसा और पश्चिम बंगाल के मंडी में बेच देते हैं । ग्रामीण क्षेत्र के लोग महुआ का पकवान भी बनाकर खाते हैं।

मौसम पर होता है उत्पादन प्रभावित

कृषि विशेषज्ञ धरणीधर प्रसाद ने कहा कि महुआ का उत्पादन मौसम की अनुकूलता पर निर्भर है।

मार्च के दूसरे सप्ताह से महुआ का उत्पादन आरंभ होता है जो मई के दूसरे सप्ताह तक चलता है।

इस दौरान वातावरण जितना अधिक शुष्क होता है, महुआ का उत्पादन उतना ही बेहतर होता है। इस वर्ष वातावरण महुआ के उत्पादन के अनुकूल रहने के कारण काफी अच्छा उत्पादन हुआ है।

गांव और जंगल हो जाते हैं गुलजार

महुआ का सीजन आने के बाद गांव से लेकर जंगल तक गुलजार हो जाता है। इस सीजन में गांव के अधिकांश लोग महुआ चुनने में जुटे रहते हैं।

काम की तलाश में पलायन करने वाले लोग भी सीजन में अपने घर वापस लौट कर महुआ चुनते हैं और अच्छी आमदनी करते हैं।

ग्रामीण रामेश्वर सिंह ने कहा कि काम की तलाश में जो भी लोग गांव से बाहर जाते हैं उनमें से अधिकांश लोग मार्च के महीने में वापस लौट आते हैं।

जंगलों को होता है भारी नुकसान

महुआ का सीजन ग्रामीणों के लिए जहां काफी फायदेमंद होता है, वहीं इसका एक बड़ा नुकसान भी है।

महुआ चुनने के लिए अक्सर सफाई के नाम पर ग्रामीण जंगल में आग लगा देते हैं। इससे जंगल को भारी नुकसान होता है।

लातेहार वन प्रमंडल पदाधिकारी रोशन कुमार ने कहा कि ग्रामीण थोड़ी सी अज्ञानता के कारण जंगल में आग लगाकर जंगल को बड़ा नुकसान कर देते हैं।

उन्होंने कहा कि ग्रामीणों से बार-बार अपील की जा रही है और उन्हें जागरूक भी किया जा रहा है कि महुआ चुनने के लिए सिर्फ पेड़ के नीचे पत्तों की सफाई करें। किसी भी सूरत में जंगल में आग न लगाएं।

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